दुनिया बनाने वाले ने इंसान बनाए, इंसान ने सभ्यता की ऐसी व्यवस्था बनाई कि एक भाई को रोटी का बंदोबस्त करने के लिए लाख मशक्कत करनी पड़ती है तो दूसरे को रोटी पचाने के लिए हजार कितने उपाय करने होते हैं. हमारी इन्हीं सामाजिक-आर्थिक व्यवस्थाओं में वह व्यक्ति, जो जीवन की हर सुबह को काम पर जाने के वक़्त के रूप में जानता है और दिनभर हाड-तोड़ मेहनत के बाद शाम को अपने परिवार की रोटी का इंतजाम कर लौटता है, को दुनिया मजदूर के नाम से जानती है. देश को हल चलाकर रोटी, रोलर चलाकर सड़क देने वाला व अमीरों के लिए बड़े-बड़े महल खड़े करने वाला मजदूर जीवन भर एक अदद रोटी, कपड़ा और मकान के लिए संघर्ष करता रह जाता है. इस असमानता के लिए सर्वाधिक जिम्मेदार मजदूरों की अजागरुकता है. अतः निष्कर्ष यह है कि मजदूर वर्ग जिस दिन शासन द्वारा अपने लिए संचालित योजनाओं के प्रति जागरूक हो गया और अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाने लगा, उस दिन समाज की यह असमानता समाप्त हो जाएगी.
मजदूर जागरूक होगा तो असमानता समाप्त होगी
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