देश में असमानता की अनेक तस्वीरों में से एक अत्यंत दारुण तस्वीर यह भी है कि इस भीषण ठण्ड में जहां एक तरफ लोग पूरी तरह से पैक कमरे के भीतर मोटे-मोटे रजाई-कम्बल ओढ़े दुबके रहते हैं या बाहर निकलते हैं तो भी ऊपर से नीचे तक गर्म कपड़ों से पैक हुए रहते हैं, वहीँ इसी देश की आबादी का एक हिस्सा ऐसा भी है जो इसी ठण्ड में फुटपाथ पर बिना किसी घर, स्वेटर और रजाई-कम्बल के ठिठुरता रहता है. कोई ज़रा आग जलाके बैठा है तो कोई-कोई एक दूसरे से चिपक-लिपटकर गर्मी का एहसास पाने की कोशिश में लगे हुए हैं. ये फुटपाथ इन लोगों का बारहमासी ठिकाना है, लेकिन ठण्डी में इनकी हालत को सोचकर कौन होगा जिसकी रूह न काँप जाए. २०११ की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार देश में ऐसे बेघर फुटपाथवासी लोगों की संख्या १७ लाख के आसपास है. हालांकि यह तो सिर्फ एक सरकारी आंकड़ा है, वरना हकीकत तो इससे कहीं अधिक बड़ी होगी. देश की राजधानी दिल्ली में ऐसे बेघरों की संख्या सर्वाधिक है जो कि मानवाधिकार की बड़ी-बड़ी बातें करने वाले इस देश के माथे पर कालिख की तरह ही है. ठण्डी में सरकारों द्वारा हर साल इन बेघरों के लिए रैन बसेरों आदि का प्रबंध तो किया जाता है, मगर कभी इनकी बेघरी की समस्या के स्थायी समाधान के विषय में सरकार की तरफ से कोई ठोस कदम उठाया गया हो, ऐसा नहीं दिखता. बहरहाल जरूरत तो यही है कि फिलवक्त ठण्डी में इन्हें रैन बसेरे तो उपलब्ध कराए ही जाएं, यथाशीघ्र इनके लिए छोटे-मोटे ही सही स्थायी आवास की भी व्यावस्था भी की जाय.
इन बेघरों का रहनुमा कौन
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